Failing health, weakness and partial memory loss have made her almost reclusive. She says: I want to write new stories but due to my illness I just can’t, and that’s my biggest loss in life.

One of India’s leading writers, Mannu Bhandari ((born 3 April 1931), is remembered for her acclaimed Hindi novels ‘Aapka Banti’ and ‘Mahabhoj’. She became a household name after penning short stories such as Trishanku, Ek Plate Sailab, Yehi Sach Hai, Main Haar Gayi and Akeli. The living legend Mannu Bhandari is in conversation with Achala Sharma. 

रजनीगंधा, आपका बंटी और महाभोज। मिलिए हिंदी की सुविख्यात कथाकार मन्नू भंडारी से।

हिंदी नयी कहानी आंदोलन के प्रमुख कहानीकारों में जब मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी के नाम लिए जाते हैं तो उनमें मन्नू भंडारी का नाम सहज रूप से जुड़ जाता है।

आज़ादी के बाद के मोहभंग, बदलते समाज और टूटते मानवीय मूल्यों के बीच नयी कहानी आंदोलन का जन्म हुआ था। आज़ादी के बाद पनपने वाले नए मध्यवर्ग की आकांक्षा और निराशा की पृष्ठभूमि में मन्नू भंडारी ने स्त्री पुरूष संबंधों के बदलते रूप को अपनी कहानियों का केंद्र बनाया। पचास के दशक में उनका पहला कहानी संग्रह ‘मैं हार गई’ प्रकाशित हुआ। उसके बाद कई और कहानी संग्रह प्रकाशित हुए जैसे, ‘एक प्लेट सैलाब’ ‘यही सच है’ ‘तीन निगाहों की तस्वीर’ त्रिशंकु’ ‘आँखों देखा झूठ’ और ‘अकेली’। उनकी कहानी ‘यही सच है’ पर १९७४ में बासु चैटर्जी के निर्देशन में रजनीगंधा नाम से फ़िल्म बनी जिसे उस वर्ष का फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिला।

कहानियों के अलावा मन्नू भंडारी के तीन उपन्यास बेहद चर्चित हुए। पति राजेंद्र यादव के साथ मिल कर लिखा गया उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ हिंदी कथा साहित्य में अपने ढंग का पहला प्रयोग था। ‘आपका बंटी’ ने अपने अनोखे कथानक की वजह से साहित्य में अपना स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित कर लिया।आपका बंटी में मन्नू जी ने वैवाहिक संबंधों की टूटन का शिकार बनने वाले बच्चे के मन को अपनी सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा और समझा है। आपका बंटी इतना लोकप्रिय हुआ कि रेडियो और रंगमंच पर उसके सफल रूपांतर हुए। नौकरशाही और राजनीतिक भ्रष्टाचार के शिकार आम आदमी की व्यथा को अभिव्यक्त करने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर आधारित नाटक का भी मंचन हुआ।

मन्नू भंडारी के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सरल शैली है जो कथ्य और पाठक के बीच सीधा और गहरा रिश्ता बनाती है।

मन्नू भंडारी बीमारी के कारण अब ना लिख पाती हैं और ना ही किसी से से ज़्यादा बात करती हैं।

अचला शर्मा कहती हैं: पिछले दिनों मेरा जब भारत जाना हुआ तो हर बार की तरह हिंदी की प्रसिद्ध आलोचक डॉ निर्मला जैन से मिलने गई। डॉ जैन बीए से लेकर पीएचडी तक मेरी गुरू रही हैं। उन्होंने बताया कि मन्नू जी की तबीयत ठीक नहीं रहती। बस तभी मन बनाया कि इस बार मन्नू जी से ज़रूर मिलना है। मन्नू जी और राजेंद्र यादव जी की बेटी रचना यादव ने मेरी यह ख़्वाहिश पूरी कर दी। लेकिन यह भी कहा कि बहुत मौक़ों पर उनकी याद्दाश्त साथ नहीं देती। मिलिए ज़रूर पर ध्यान रखिए कि उन्हें सुनने में थोड़ी मुश्किल होती है। मेरे अनुरोध पर रचना यादव ने मन्नू जी की बातों को रिकॉर्ड करने की अनुमति दे दी।

गुड़गाँव सिथत रचना यादव के घर पर जब मैं मन्नू भंडारी से मिली तो मानो हिंदी कहानी का स्वर्णिम युग आँखों के सामने से गुज़र गया।आपका बंटी के किरदार ज़िंदा हो उठे। मैंने कहा, मन्नू जी, बहुत साल हो गए, आप शायद मुझे पहचान न सकें। मैं अचला शर्मा हूँ। डॉ जैन……अभी मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि आवाज़ गूँजी, लंदन से कब आईं? कैसी हैं?

सच रोमांच हो आया। इतने लंबे अंतराल के बावजूद उन्होंने मुझे पहचान लिया।

एक घंटे तक बातचीत हुई और रिकॉर्ड भी हुई। लेकिन यादों का ऐसा तूफ़ान था कि बातचीत किसी एक विषय पर टिक ही नहीं पा रही थी। मन्नू जी बज़ाहिर तो ठीक हैं मगर बीमारी और बढ़ती उम्र ने याद्दाश्त को धुँधला कर दिया है। बार बार एक ही बात उन्होंने कही कि वे और लिखना चाहती हैं पर सेहत साथ नहीं देती।

एक घंटे की मुलाक़ात को मैंने सिर्फ़ तेरह मिनट में समेटा है। लेकिन उनका हर शब्द यादों के दरवाज़े पर दस्तक देता है। और उनकी आवाज़ हमें याद दिलाती है कि ये वही मन्नू भंडारी हैं जिन्हें पढ़ कर हम में से बहुत लोगों ने लिखने के लिए क़लम उठाया।

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