जाँ निसार अख़्तर ने क्या ख़ूब कहा है: 

हम से पूछो के ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या  

चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए 

यह कहना ग़लत न होगा कि ग़ज़ल उर्दू शायरी का सबसे हसीन रूप है। उर्दू में बेहतरीन रूबाईयां और नज़्में लिखी गई हैं और लिखी जा रही हैं, लेकिन ग़ज़ल आज भी हर मुशायरे और हर महफ़िल की शान है। मीर, ग़ालिब, इक़बाल, फ़ैज़, फ़िराक़ से होते हुए शहरयार, परवीन शाकिर, जॉन एलिया और अहमद सलमान तक ग़ज़ल का सफ़र उसकी लोकप्रियता को ही साबित करता है। इसकी एक वजह तो यह हो सकती है कि ग़ज़ल का केवल एक शेर ही अपने आप में ज़िंदगी का पूरा फ़लसफ़ा समेटे रहता है। और दूसरी वजह शायद यह है कि ग़ज़ल गायी जा सकती है। लेकिन ग़ज़ल कैसे बनती है, ग़ज़ल लिखने की कला क्या है, शायर के लिए शेर या ग़ज़ल लिखते वक़्त किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है। 

इल्मशायरीउर्दू में शेर और ग़ज़ल लिखने की कला और उसके शिल्प का एक अनोखा रेडियो कार्यक्रम है। लगभग पंद्रहबीस मिनट की बीस कड़ियों की यह कार्यक्रम शृंखला उर्दू में शेर और ग़ज़ल कहने की कला से जुड़े बहुत से सवालों का जवाब देगी। 

इस कार्यक्रम में उर्दू शायरी की अलग-अलग ध्वनियों और लय की जानकारी है जिसे उर्दू शायरी में ‘इल्म-ए-अरूज़’ कहा जाता है। हिंदी कविता के संदर्भ में इसे छंद शास्त्र कहा जाता है। यानी, जिस तरह हिंदी की छंदबद्ध कविता, दोहा, सोरठा, रोला, चौपाई या कुंडलिया जैसे अनेक छंदों में बंधी रही है, उसी तरह उर्दू शायरी अलग अलग बहरों में बंधी है। बहर को हिंदी में छंद और अंग्रेज़ी में मीटर कहा जा सकता है।

बहर क्या है, कितनी तरह की बहरें होती हैं, एक बहर दूसरी बहर से कैसे अलग है, सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली बहरें कौन सी हैं, किसी एक बहर को निर्धारित करने वाले चरण यानी अरकान क्या हैं, बहर में ध्वनि, लय, गति वग़ैरह क्या भूमिका निभाते हैं, रदीफ़ और क़ाफ़िया किसे कहते हैं, इन तमाम सवालों के जवाब देने वाले इल्म-ए-अरूज़ की शुरूआत कब और कैसे हुई- यह सारी जानकारी इस रेडियो शृंखला में शामिल है जो उर्दू शायरी की कला और तकनीक में गहरी रुचि रखने वाले पत्रकार महरे आलम और सिनेइंक के परवेज़ आलम की बातचीत पर आधारित है।

एक शेर को सुनकर वाह वाह करते वक़्त हम इस बात पर ग़ौर नहीं करते कि उसकी बहर क्या है, उसका वज़न सही है या नहीं।  इन बातों की तरफ़ उसी शख़्स का ध्यान जाता है जो ख़ुद शायर हो या जिसने महरे आलम की तरह एक लंबे अर्से से उर्दू शायरी लिखने की कला और शास्त्र का अध्ययन कर रहे हैं। इल्म-ए-शायरी में उन्होंने बहरों के संदर्भ में कई गहरी और जटिल बातों की भी जानकारी दी है जैसे, ज़िहाफ़ात (Catalexis) यानी किसी बहर या मीटर में आने वाले बदलाव क्या होते हैं, वो कितनी तरह के हैं, तक़्ती (Scansion) क्या है जिससे शेर की बहर के चरण यानी अरकान मापे जाते हैं।

इल्मशायरी उन तमाम उर्दू प्रेमियों के लिए है जो उर्दू शायरी पढ़नेसुनने का शौक़ रखते हैं या ख़ुद शेर लिखना सीखना चाहते हैं। 

इस प्रोग्राम की दो ख़ास बातें हैं। पहली यह कि इल्म-ए-शायरी में मुश्किल बातों को भी काफ़ी कुछ आसान करके समझाया गया है। दूसरी ख़ास बात यह कि सिर्फ़ बातें नहीं हैं, मिसालें भी हैं और ग़ज़ल गायिकी की दुनिया में उभरती हुई गायिका शेफ़ाली फ़्रॉस्ट की आवाज़ में कुछ मशहूर ग़ज़लें भी हैं।

इल्मशायरीः पहली कड़ी

इल्म-ए-शायरी की पहली कड़ी में महरे आलम बताते हैं कि शेर क्या है और उसका ढाँचा क्या होता है। और आप सुनेंगे शेफ़ाली फ़्रॉस्ट की आवाज़ में असरार उल हक़ ‘मजाज़’ की ग़ज़ल।

कुछ तुझको ख़बर है हम क्या क्या, ऐ शोरिश-ए-दौराँ भूल गए

वो ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ भूल गए, वो दीदा-ए-गिरियाँ भूल गए।

इल्मशायरीः दूसरी कड़ी

इल्म-ए-शायरी की दूसरी कड़ी में महरे आलम अरूज़ यानी उर्दू शायरी में वर्ण और मात्राओं की व्यवस्था के सिद्धांत पर रौशनी डालते हैं। हिंदी कविता में इस तरह की व्यवस्था को छंद शास्त्र और अंग्रेज़ी कविता में Prosody कहा जाता है।

साथ में आप सुनेंगे शेफाली फ़्रॉस्ट की सुरीली आवाज़ में मजाज़ की एक ग़ज़ल जिसका एक शेर है:

बख़्शीं हैं हमको इश्क़ ने वो जुर्रतें मजाज़ 

डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम

इल्मशायरीः तीसरी कड़ी

देखना तक़रीर की लज़्ज़त के जो उस ने कहा 

मैं ने ये जाना के गोया ये भी मेरे दिल में है।

ग़ालिब का ये शेर हम सब के दिल में समाया रहता है और जब हम कोई अच्छा शेर सुनते हैं तो बेसाख़्ता ख़याल आता है के हम भी यही कहना चाहते थे।लेकिन अच्छा शेर क्या होता है? नस्र और नज़्म यानी गद्द और पद्द के दरमियान कितना फ़ासला है और इस फ़ासले को तय करने लिए क्या किया जाए? जवाब मिलेगा ‘इल्म-ए-शायरी’ की तीसरी कड़ी में। साथ में शेफाली फ़्रॉस्ट की आवाज़ में मुईन अहसन जज़बी की आलमी शोहरत याफ़्ता ग़ज़ल:

मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ जीने की तमन्ना कौन करे 

अब ये दुनिया या वो दुनिया, ख़्वाहिश ए दुनिया कौन करे। 

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